ग्लास पूरा भरा है : आधे में पानी है, आधे में अज्ञान
ग्लास पूरा भरा है : आधे में पानी है, आधे में अज्ञान। ( अज्ञान भी हवा-सा पारदर्शी होता है और आदमी को हल्का बनाता है। )
यह जो वेटर ‘एनीथिंग मोर ‘ पूछकर खाली हो चुका गिलास भर जाता है न , यह वह पेयजल है जिसको नाली में जाना है।
अरे इतना कहाँ सोचा जा सकता है? इतना तो चलता है? जीवन इतना सोच कर चलेंगे , तो जिएँगे कैसे? इन हलके प्रश्नों का उत्तर मात्र यह है कि आज-कल सबसे कम कोई काम किया जा रहा है, तो वह है सोचना।
हम मानते हैं कि पानी हमेशा हमें पीने को मिलता रहेगा। हम प्यासे नहीं हैं , हमारे बच्चे भी नहीं है। पोते भी नहीं होंगे , और आगे वाली पीढ़ियाँ भी नहीं। हम सौ साल के आगे के दिल्ली-लखनऊ-भोपाल की कल्पना कैसे बचकाने ढंग से करते हैं!
मीठे पानी की स्रोत नदियाँ या जलाशय हैं। वे हमेशा बने रहेंगे , यह हमारा भ्रम है। पानी के लिए युद्ध पर हमारी अगली पीढ़ियाँ बातें करेंगी और हमें कोसेंगी।
वेटर को पानी भरते समय ‘नो थैंक्स’ कहना ज़रूरी हो जाता है। मैं भर चुका हूँ, आप अपना जग रोक लें।
डॉक्टर स्कन्द शुक्ला की से साभार